असफल शिखर वार्ता
विगत कुछ दिनों से ट्रंप और पुतिन की शिखर वार्ता चर्चा में थी। पुतिन तो खैर नपा तुला बोलते हैं, परन्तु ट्रंप अपने बड़बोले पन के लिए जाने जाते हैं और जब से उन्होंने दूसरी बार राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण किया है वे इसे निरंतर सिद्ध कर रहे हैं।
किसी मंजे हुए राजनेता की सबसे बड़ी विशेषता यही होती है कि वह बहुत सोच समझ कर बोलता है। उसके बोलने, उसके शब्दों के चयन, उसकी शारीरिक भाषा, उसकी भाव भंगिमा सभी का महत्व होता है। और जब वह चुप रहता है तब उसकी चुप्पी के भी निहितार्थ निकाले जाते हैं। परन्तु ट्रंप इन सबके परे हैं। वे सतत बोलते रहते हैं। ट्विटर के माध्यम से भी वे नियमित प्रतिक्रियाएं देते रहते हैं और अपनी राय प्रकट करते रहते हैं। और कईं बार उनके वक्तव्य आपस में विरोधाभासी होते हैं। इस सब की वजह से उनकी जितनी जग हंसाई हुई है, उतनी शायद ही किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की हुई हो!
इसी सब बयानबाजी के बीच ट्रंप पिछले कुछ महीनों से लगातार यह स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं कि वे शान्ति दूत हैं, उनके प्रयासों से कुछ युद्ध थम चुके हैं और कुछ अन्य देशों के बीच भी वे शान्ति स्थापित करने जा रहे हैं। वे किसी भी कीमत पर स्वयं को विश्व में शान्ति का मसीहा स्थापित करने पर तुले हुए हैं। सम्भवतः उन्हें लगता है कि यदि उन्होंने पूरे विश्व के सभी युद्ध रुकवा दिए तो इतिहास में वे जॉर्ज वॉशिंगटन और अब्राहम लिंकन की श्रेणी में शामिल हो जाएंगे। ट्रंप इस शान्ति का वादा अपने चुनाव प्रचार में भी करते रहे थे और अब उन्होंने इसे अपना इतना बड़ा लक्ष्य बना लिया है कि उसे प्राप्त करने के लिए वे उचित अनुचित में भी भेद नहीं कर रहे हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच मई 2025 में चल रहा संघर्ष, पाकिस्तान का निवेदन भारत द्वारा मान लिए जाने से थम गया। परन्तु ट्रंप लगातार झूठ बोल कर इसका श्रेय लेने में जुट हुए हैं। सर्वथा अनुचित, उनके इस श्रेय को लेने के प्रयास को भारत द्वारा पूरी तरह से नाकाम कर दिया गया है।
इस परिपेक्ष में अलास्का में हुई पुतिन – ट्रंप वार्ता स्वतः ट्रंप के लिए ही अत्यंत महत्वपूर्ण बन गई थी। अपने चुनाव प्रचार में ट्रंप सतत यह दावा करते रहे थे कि वे सत्ता संभालते ही रूस – यूक्रेन युद्ध रुकवा देंगे। उन्हें सत्ता संभाले 8 महीने बीत चुके हैं परन्तु वे इस संघर्ष को रुकवा नहीं पाए हैं। इस असफलता को ढांकने के लिए ही वे भारत – पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता का श्रेय लेने का प्रयास कर रहे हैं। वस्तुतः यूक्रेन संघर्ष विराम नहीं होना ट्रंप को बुरी तरह चुभ रहा है। वे तमाम प्रयत्न कर चुके हैं। यहां तक कि एक बार युद्ध विराम की घोषणा भी कर चुके हैं। लेकिन उन्हें मुंह की ही खानी पड़ी क्योंकि संघर्ष उसके पश्चात भी निरन्तर चल ही रहा है।
यदि ट्रंप अलास्का में युद्ध विराम स्थापित करवा लेते, तो निश्चित ही इसे एक विजय के रूप में निरूपित किया जाता और ट्रंप स्वयं फूले नहीं समाते। उन्हें विश्व का सबसे बड़ा और शक्तिशाली नेता घोषित कर दिया जाता। अमेरिका को शेष विश्व से जो चुनौतियां मिल रही है, उनके विरुद्ध अमेरिका और कड़ा रुख दिखाता और ट्रंप की मनमानी सिर चढ़ कर बोलती। परन्तु ऐसा कुछ हुआ नहीं। ट्रंप, पुतिन के सामने बौने नजर आए और पुतिन इस वार्ता से अपना कद और वजन बढ़ा कर निकले हैं। पुतिन ने यह साबित कर दिया है कि वे एक स्वतंत्र राजनेता हैं और किसी भी दबाव में आए बगैर उनके देश के हितों के विरुद्ध कोई फैसला नहीं लेंगे। वार्ता के पश्चात की पत्रकार वार्ता में पुतिन आत्मविश्वास से भरे नजर आए। उन्होंने प्रभावी ढंग से अपना पक्ष रखा और कूटनीतिक रूप से कसे हुए वक्तव्य दिए। इसके विपरीत ट्रंप बदहवास नजर आ रहे थे और उनकी ओर से तैयारी का अभाव नजर आया। उनके वक्तव्य अस्पष्ट और कमजोर थे। पुतिन ने इस वार्ता के माध्यम से स्पष्ट कर दिया कि रूस अमेरिका और नाटो के सीधे समर्थन के बावजूद यूक्रेन के उस हिस्से पर कब्जा कर चुका है जो उसे चाहिए था और यह कि उसे अब वहां से हटाया जाना लगभग नामुमकिन है।
ट्रंप निश्चित ही चाहते होंगे कि अलास्का वार्ता के पश्चात वे विश्व के सिरमौर राजनेता के रूप में प्रतिष्ठित हो जाए पर वैसा हो नहीं पाया है। हां, पुतिन जरूर यह स्थापित करने में सफल रहे कि वे एक गम्भीर, मजबूत और विचारवान राजनेता है और परिस्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ने की क्षमता रखते हैं।
श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
16/08/2025

बहूत सटीक और सही विश्लेषण किया है
🙏🙏