क्या भारत का पाकिस्तान से क्रिकेट खेलना उचित है?

पहलगाम काण्ड की पृष्ठभूमि में, क्या भारत को पाकिस्तान से क्रिकेट खेलना चाहिए?

विगत कुछ दिनों से इस पर सामाजिक माध्यमों पर जम कर बहस चल रही है। प्रथम दृष्टया, यही लगता है कि जिस देश की सरकार और जनता दोनों हमारे विरुद्ध खूनी हमले करने को लालायित रहते हो और हमसे अत्यन्त शत्रुता पूर्ण रिश्ते रखते हो, उनसे क्यों खेलना? निश्चय ही यह आम भारतीय की भावना है और आम भारतीय कदापि नहीं चाहता कि पाकिस्तान से ऐसे कोई भी रिश्ते रखे जाय जिन्हें हम दोस्ताना या सकारात्मक कह सकें। कम से कम तब तक नहीं जब तक, एक देश के रूप में, आतंकियों का समर्थन उनकी खुली नीति हो।

परन्तु, भावनाओं के आगे इसका व्यावहारिक पक्ष भी है। क्रिकेट एक मात्र खेल नहीं है जिसकी प्रतियोगिताओं में भारत और पाकिस्तान दोनों भाग लेते हैं। ओलंपिक और एशियाई खेलों से लेकर अनेक ऐसी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाएं हैं जहां दोनों देशों के खिलाड़ी भाग लेते हैं। यदि हम एक देश का बहिष्कार करेंगे तो स्पर्धाओं में भाग ही नहीं ले पाएंगे। हम धीरे धीरे कईं खेलों में अंतर्राष्ट्रीय शक्ति बनते जा रहे हैं। शतरंज, हॉकी, कुश्ती, बैडमिंटन, तीरंदाजी और धनुर्विद्या आदि के साथ हम एथेलेटिक्स में भी अपना प्रदर्शन सतत सुधार रहे हैं। देश में खेलों के प्रति रुझान बढ़ रहा है और यह रुझान क्रिकेट के परे अन्य कईं खेलों तक पहुंच रहा है। बढ़ती संपन्नता की वजह से निजी और सार्वजनिक स्तर पर सुविधाएं और उनके उपयोग की मनोवृत्ति भी बढ़ रही है और इसी वजह से छोटे छोटे स्थानों से भी प्रतिभाएं राष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम कर रही है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। खेलों में भाग लेना और उनमें विजय प्राप्त करना मुरे राष्ट्र को आह्लादित करता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी खेल में अच्छा प्रदर्शन राष्ट्र के आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

इन तमाम वास्तविकताओं के परिपेक्ष में सिर्फ क्रिकेट में पाकिस्तान का बहिष्कार कोई बहुत प्रभावी और लम्बे समय तक चलने वाला उपाय नज़र नहीं आता। इसकी बजाय कल दुबई में खेले गए मुकाबले में, पहले खेल के दौरान पाकिस्तानी खिलाड़ियों से हाथ नहीं मिलाना और बाद में पारितोषिक वितरण और प्रेस संवाद के दौरान कप्तान सूर्यकमार यादव द्वारा बिना किसी ला पॉपग लपेट के यह कहना कि भारतीय खिलाड़ी पहलगाम हमले के पीड़ितों के प्रति संवेदनशील है और भारतीय सेना के साथ खड़े हैं, काफी बेहतर रवैया दिखाई पड़ता है। खेल भी खेला गया और पाकिस्तानी खिलाड़ियों के साथ शिष्टाचार न निभा कर एक मजबूत सन्देश भी दे दिया गया। यह भी गौरतलब है कि इस सब के बावजूद भी पाकिस्तान की ओर से बहिष्कार की कोई चर्चा नहीं है!

वस्तुतः यह पाकिस्तान के मुंह पर एक तमाचा ही है कि आपके साथ खेलना हमारी मजबूरी है अन्यथा हम आपको हाथ मिलाने लायक भी नहीं समझते! खेल के मैदान में इससे ज्यादा बेइज्जती सम्भव ही नहीं है और न खेल कर नजरअंदाज करने से भी ज्यादा जलील करने वाली हरकत है। हमारा बहिष्कार करना एक बार ही खबर बनता। यहां तीन मुकाबले होना हैं ( यह मानते हुए कि ये दोनों टीम ही फाइनल में आएंगी) और हर मुकाबले में यदि यही रवैया अपनाया जाता है तो यह एक वैश्विक ख़बर बन सकती है। मुझे नहीं लगता कि अमेरिका और सोवियत संघ के शीत युद्ध काल या अरब – इजरायल के कटुतम दौर में भी कभी किसी टीम ने इस तरह सामने वाली टीम को अपमानित किया हो।

कईं राष्ट्र प्रेमी, पानी और आतंकवाद साथ नहीं बह सकता जैसे दाखिले दे रहे हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि ये दो राष्ट्रों के बीच के विषय हैं। वहां हम हमारी सोच के अनुसार निर्णय ले सकते हैं। जैसे यह निर्णय लिया गया है कि पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय खेल नहीं खेला जाएगा। सिर्फ अंतराष्ट्रीय स्पर्धा में ही मुकाबले होंगे। वे भी पाकिस्तान में नहीं।

हां, इसके आगे जनता अंतराष्ट्रीय स्पर्धा में खेले जा रहे मुकाबलों को न देखने के लिए स्वतंत्र है। यदि आज हम में से अधिकांश इन मुकाबलों को देखने का बहिष्कार कर दें, तो यह राष्ट्रवाद का शानदार प्रदर्शन होगा। यदि भारत पाक मुकाबले की TRP धराशाई हो जाए तो इस थप्पड़ की गूंज आने वाले वर्षों तक सुनाई देती रहेगी। और यह तो हमें ही करना है। BCCI और सरकार ने भारतीय टीम और कप्तान के माध्यम से जो सम्भव था वह कर दिया है। अब हमारी बारी है।

क्या हम ऐसा कर सकते हैं?

श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
15/09/2025

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