भारत में आम राय थी कि ट्रंप सत्ता में आने पर अमेरिका का भारत की ओर रुख सकारात्मक रहेगा। इस सोच का आधार ट्रंप का पिछला कार्यकाल था। यह भी सभी को ज्ञात था कि ट्रंप और मोदी जी की अच्छी मित्रता है और यह कि इसका भी लाभ द्विपक्षीय व्यापार आदि में प्राप्त होगा।

परन्तु ट्रंप जब से सत्तासीन हुए हैं उनके तेवर काफी बदले हुए नजर आ रहे हैं। यह तो अपेक्षित था कि वे अमेरिका की कीमत पर भारत को लाभ नहीं पहुंचाएंगे। परन्तु वे भारत को सीधी हानि पहुंचाने वाली नीतियों पर अमल करेंगे यह भी अपेक्षित नहीं था। वस्तुतः विगत सात आठ महीनों के उनके कार्यकाल में उनका व्यवहार, उनकी टिप्पणियां और उनकी निर्णय प्रक्रिया सभी चौंकाने वाले और निराशाजनक रहे हैं। एक ओर स्वयं के ही कईं निर्णयों को उन्हें बदलना पड़ा वहीं दूसरी ओर कनाडा को 51 वा राज्य बनाने और ग्रीनलैंड को खरीदने जैसे बेतुके बयानों ने उनकी साख को गहरे आघात पहुंचाए हैं।
राष्ट्रपति बनने के बाद से ही ट्रंप काफी मुखर रहे हैं और ऑपरेशन सिन्दूर के बाद से वे भारत के विषय में भी लगातार बयानबाजी कर रहे हैं। भारत के आधिकारिक स्तर पर बार बार स्पष्ट करने के बावजूद वे यह लगातार कहते जा रहे हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के मध्य मध्यस्थ की भूमिका निभा कर सैन्य संघर्ष को विराम लगवाया था। भारत इस दावे को सिरे से खारिज कर चुका है और पाकिस्तान ने अब तक कभी इसका समर्थन नहीं किया है। अब भारत पर दबाव को और बढ़ाते हुए ट्रंप द्वारा भारतीय उत्पादों पर आयात शुल्क 50% बढ़ा दिया गया है। इस कदम से अमेरिका में अधिकांश भारतीय उत्पाद महंगे हो जाएंगे। निश्चित ही इस वजह से उन उत्पादों की मांग में कमी आएगी और भारतीय व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
इस तमाम जद्दोजहद के दौरान ट्रंप ने एक वक्तव्य में यह दावा किया है कि भारत रूस से तेल खरीद कर मोटा मुनाफा कमा रहा है। और इसलिए वह अधिक शुल्क देने के लिए बाध्य है!
यह वक्तव्य ट्रंप और उनके साथ अधिकांश समृद्ध पश्चिम देशों की मानसिकता को उजागर करने वाला बयान है। ट्रंप कह क्या रहे हैं? भारत मुनाफा न कमाएं? क्यों ? यानी यदि हमें कोई वस्तु कम दर पर उपलब्ध है तब भी हम उसे न खरीदे क्योंकि ऐसा करने से ट्रंप के पेट में दर्द उठ रहा है? इससे अधिक क्षुद्र सोच क्या हो सकती है? जो अमेरिका दशकों से शेष विश्व को महंगे उत्पाद विक्रय कर धन कमा रहा है, उसे भारत के जरासे लाभ पर, और लाभ से भी ज्यादा सही शब्द है बचत पर, इतनी समस्या हो रही है? अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय 50000 डॉलर से भी अधिक है वहीं भारत की 3000 डॉलर से भी कम! भारत की अर्थव्यवस्था का आकार अमेरिका से महज 10-15% ही है। तब भी इतनी ईर्ष्या? क्या इस मानसिकता का सीधा आशय यह नहीं है कि ट्रंप चाहते हैं कि भारत गरीब ही रहे?
यह दुखद है कि ट्रंप के इस वक्तव्य पर भारत की ओर से आधिकारिक और सामाजिक स्तर पर कोई तीव्र प्रतिक्रिया नहीं हुई। न्यायोचित होता यदि भारत और अमेरिका में रह रहे भारतीय समाज की इस सन्दर्भ में तीव्र प्रतिक्रिया आती। चन्द दशक पूर्व जब हमारे देश में गरीबी चरम पर थी, जब हमारी अर्थव्यवस्था कर्ज और अनुदानों पर निर्भर थी, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारी हैसियत अत्यन्त क्षुद्र थी और जब हम उभरती आर्थिक शक्ति न हो कर एक जीर्ण शीर्ण अर्थव्यवस्था से ग्रसित थे; तब भी हमने कभी अमेरिका या अन्य किसी देश के लाभ कमाने पर कोई आपत्ति व्यक्त नहीं की थी।
ट्रंप की यह मानसिकता, एक ऐसे सामंतवादी धनाढ्य व्यक्ति की मानसिकता है जो चाहता है कि अन्य कोई धन अर्जित कर सक्षम न बने। वे गरीब याचक बने रहे और अमेरिका की ओर दीन दृष्टि से देखते रहे। और बदले में अमेरिका उनकी जमीन का उपयोग अपने सैन्य अड्डों के लिए करे, उनके प्राकृतिक स्रोतों का दोहन कर विपुल लाभ कमाएं, उन्हें कुछ धन कर्ज और कुछ मदद के रूप में दे कर अपना अहसान जताए और स्वयं की छवि उदार राष्ट्र के रूप में स्थापित करे।
ट्रंप की यह भावना कि भारत का लाभ कमाना अनुचित है, हम सभी भारतीयों की बढ़ती समृद्धि के लिए एक गंभीर चुनौती है। यह मानसिकता हमारी प्रगति की राह में विभिन्न प्रकार की रुकावटें खड़ी करती रहेगी। हमें चाहिए कि हम एकजुट हो कर इस चुनौती का सामना करे। अत्यन्त लघु स्तर पर स्वदेशी का अधिक से अधिक उपयोग भी इस दिशा में सार्थक और सकारात्मक प्रयास हो सकता है। कोई भी उत्पाद क्रय करते समय उसका उत्पादन कहां हुआ है यह देखें और जहां तक संभव हो भारतीय उत्पादों को प्राथमिकता देने का प्रयास करें। यह छोटा सा प्रयास भी हमारी ओर से राष्ट्र सेवा में योगदान होगा और महती उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उपादान भी।
श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
11/08/2025
very true 👍
बहुत अच्छा लेख लिखा है, हम देशवासियों को भारतीय उत्पादको को प्राथमिकता देकर ही अमेरिका को इसका जवाब देना पड़ेगा