भावांतर योजना!
एक बार पुनः मध्यप्रदेश में खरीफ की फसल के सन्दर्भ में भावांतर योजना लागू करने की घोषणा की गई है। यह स्वागत योग्य निर्णय है। हालांकि कल इन्दौर मैं किसानों द्वारा विशाल ट्रैक्टर रैली के माध्यम से इस योजना को अपना सामूहिक समर्थन दिया गया है, परन्तु कुछ लोगों ने इस योजना के क्रियान्वयन के विषय में कुछ चिंताएं भी प्रकट की है। यह योजना मूलतः मामाजी के कार्यकाल में 2017 में बनाई गई थी और लागू भी की गई थी। सम्भव है, जमीनी क्रियान्वयन में, उस समय कुछ कमियां रही हो। इसी वजह से आने वाले वर्षों में इसे लागू नहीं किया गया था। अब 2025 में खरीफ की मुख्य फ़सल सोयाबीन के लिए इसे पुनः लागू किया जा रहा है। उम्मीद है कि इस बार, जो भी तकनीकी या व्यावहारिक समस्याएं रही होंगी उनका हल निकाल कर इस योजना को क्रियान्वित किया जा रहा है।
यह योजना एक सोचा, समझा और सरल नवाचार है। भावांतर योजना समर्थन मूल्य से जुड़ी हुई है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि समर्थन मूल्य सरकार द्वारा किसी अनाज के लिए घोषित की जाने वाली आधार कीमत (base price) होती है। सरकार से अपेक्षित रहता है कि यदि बाज़ार की परिस्थितियों की वजह से अनाज मंडी में किसी अनाज की कीमत घोषित समर्थन मूल्य से भी नीचे आ जाए तब सरकार अपने कोष से ऐसा अनाज समर्थन मूल्य पर क्रय कर लेती है। यानी यदि सोयाबीन का घोषित समर्थन मूल्य ₹5000/- प्रति क्विंटल है परन्तु मण्डी में व्यापारी ₹4500/- ही कीमत दे पा रहे हैं, ऐसी स्थिति में सरकार किसान को ₹5000/- का मूल्य चुका कर उसका अनाज खरीद कर अपने गोदाम में रखवा लेती है। भविष्य में जब देश को जरूरत हो तब या सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से यह अनाज सरकार द्वारा काफी कम मूल्य पर जनता को विक्रित कर दिया जाता है। सभी राज्य सरकारें और केन्द्र सरकार इस प्रकार से खरीदी करती रही हैं। समर्थन मूल्य प्रणाली की वजह से अनाजों की कीमत समर्थन मूल्य से नीचे नहीं जा पाती और इस प्रकार किसान के हितों को रक्षा होती रहती है। विगत वर्षों में किसान के स्तर पर जो संपन्नता बढ़ी है, उसमें समर्थन मूल्य योजना की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
भावांतर योजना इसी प्रणाली का अधिक सरल, प्रभावी और परिष्कृत स्वरूप है। इस योजना के अन्तर्गत, मण्डी में किसी फसल की कीमत समर्थन मूल्य से भी नीचे होने की स्थिति में, सरकार किसान से उसकी फ़सल क्रय करने के स्थान पर उसे समर्थन मूल्य और बाजार मूल्य के अन्तर का भुगतान कर देती है। यानी ऊपर दिए उदाहरण में 5000/- समर्थन मूल्य के सामने यदि मण्डी में 4500/- के दाम मिल रहे हो तब किसान की फ़सल खरीदने के स्थान पर सरकार उसे 500/- प्रति क्विंटल के भावांतर यानी मूल्यों के अन्तर का भुगतान कर देती है। इस प्रकार किसान को 4500/- की कीमत मण्डी से और 500/- भावांतर सरकार से प्राप्त हो जाता है।
इस योजना के चलते सरकार को अनावश्यक अनाज क्रय नहीं करना पड़ता। जहां समर्थन मूल्य पर उसे 5000/- का भुगतान करना पड़ता वहीं भावांतर में उसे मात्र 500/- प्रति क्विंटल का ही भुगतान करना पड़ता है। अनाज क्रय करने के पश्चात भी काफी लंबी प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है, जिस पर विपुल धन भी व्यय होता है। सबसे पहले अनाज को तुलवा कर बोरों में भरना होता है। बोरे खरीदने पड़ते हैं। उसमें अनाज भरवाने की मजदूरी देना होती है। इसके पश्चात बोरे ट्रक में चढ़वाने की मजदूरी, मण्डी से गोदाम तक का ट्रक का मालभाड़ा, गोदाम में माल उतारने की मजदूरी, गोदाम का किराया, बिजली का खर्च, इस सब प्रक्रिया के दौरान माल के गिरने, ढ़ूलने, कीड़ा लगने आदि से होने वाली हानि, समय के साथ माल में नमी की कमी से होने वाले वजन की कमी से हानि आदि कईं खर्चे और हानियां सरकार को वहन करना पड़ते हैं। फिर इस पूरी प्रक्रिया में भ्रष्टाचार के भी अनेक अवसर उत्पन्न होते हैं। भावांतर योजना इस भ्रष्टाचार की संभावना ही समाप्त कर देती है।
भावान्तर में सरकार सभी खर्च और हानियों से भी बच जाती है। सरकार को सिर्फ भाव में अन्तर की राशि किसानों के खातों में डालना होती है। माल व्यापारी के पास चला जाता है और सरकार को उसके पश्चात की लम्बी और महंगी प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं रह जाती। मण्डी में जब बोली के माध्यम से किसान का अनाज कोई व्यापारी खरीदता है तब उपस्थित मण्डी कर्मचारी किसान को तय भाव की एक चिट्ठी देता है। बाद में व्यापारी अनाज का वजन करवा कर उसी भाव पर किसान को भुगतान कर देता है। यदि इस चिट्ठी पर अंकित भाव, समर्थन मूल्य से कम है, तो किसान सरकार से समर्थन मूल्य और चिट्ठी के मूल्य के अन्तर का धन प्राप्त कर लेता है। यही भावांतर कहलाता है।
प्रकिया, सरल और पारदर्शी है। किसान को समर्थन मूल्य के बराबर धन मिला जाता है। सरकार को अनाज क्रय कर गोदामों में रखना नहीं पड़ता और व्यापारी का व्यापार भी चलता रहता है। अंग्रेजी में इसे win win situation याने कि ऐसी परिस्थिति कहते हैं जहां सभी को लाभ मिल रहा हो।
एक योजना, जिसे असफल बता कर हाशिए पर डाल दिया गया हो, उसे पुनः लागू करना किसी भी राजनेता के लिए एक चुनौती ही होता है। और फिर जिस योजना से अनेक लोगों के निजी हितों की हानि हो रही हो उसे लागू करना और भी बड़ी चुनौती होती है। मुख्यमंत्री मोहन यादव जी ने यह चुनौती स्वीकार की है। योजना सैद्धांतिक रूप से बेजोड़ है। किसान को कोई हानि नहीं है और सरकार का धन, ऊर्जा, प्रबन्धन आदि सभी बचता है। आशा करें कि इस योजना का जमीनी क्रियान्वयन भी व्यवस्थित हो और किसानों को किसी प्रकार समस्या का सामना न करना पड़े।
यदि यह योजना सफल हो जाती है तो भ्रष्टाचार उन्मूलन की दिशा में यह एक सार्थक प्रयास होगा।
श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
14/10/2025

