एक बार गलती होती है और दूसरी बार मूर्खता। परन्तु जब बार बार कुछ अनुचित किया जाता है, तो उसके पीछे बदनीयत, गहरी योजना और घातक इरादे होते हैं।
भारतीय विपक्ष, खास तौर पर राहुल जैसे नेता विगत कुछ वर्षों से लगातार जो राजनीति कर रहे हैं उसके पीछे बदनीयत और घातक योजना साफ नजर आ रहे हैं। जो कुछ विपक्ष की राजनीति के नाम पर किया जा रहा है, वह अत्यन्त निकृष्ट मनोवृत्ति को दर्शानेवाला है। विपक्ष के व्यवहार में देश हित कहीं नजर नहीं आ रहा। विपक्ष की राजनीति के पीछे सिर्फ और सिर्फ सत्ता की चाहत और नरेन्द्र मोदी से व्यक्तिगत स्तर पर अपार घृणा ये ही आधार नजर आते हैं। नरेन्द्र मोदी के प्रति घृणा की स्थिति यह है कि यदि वे देश हित में कार्य कर रहे हैं, तब भी उनकी आलोचना ही की जाती है। उन्हें श्रेय मिलने के भय के चलते विपक्षी दल, जिन राज्यों में वे सत्ता में हैं वहां, जनहित की योजनाएं भी क्रियान्वित नहीं करते हैं।
राफेल पर चौकीदार चोर है, पेगासस, हिंडेनबर्ग, अडानी का व्यापार, EVM आदि कईं मुद्दे विपक्ष द्वारा खड़े किए गए हैं और एक भी मुद्दे पर न तो वे जनता का समर्थन प्राप्त कर सके हैं और न ही न्यायालयों से कोई निर्णय अपने पक्ष में ला सके हैं। स्पष्ट है कि ये मुद्दे तथ्यहीन थे और इसलिए न्यायालय में टिक नहीं पाए उसी प्रकार, इन मुद्दों को उठाकर जनता पर प्रभाव डालने के लिए आरोप लगाने वाले में जो नैतिक बल होना चाहिए, वह जनता को इन नेताओं में नजर नहीं आता इसलिए जनता भी इन्हें महत्व नहीं देती है। मोदी और भाजपा पर आरोप लगाने के जुनून के चलते अभी वर्तमान में राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव आयोग पर अनर्गल आरोपों की बौछार की जा रही है। इन आरोपों के चलते संसद में कार्य नहीं होने दिया जा रहा है। समाचार माध्यमों, सोशल मीडिया आदि पर आज भी कांग्रेस की मजबूत पकड़ है, जिसके बल पर इस मुद्दे को ज्वालामुखी बना दिया गया है। चुनाव आयोग के कर्मचारियों को धमकाया जा रहा है। हालांकि चुनाव आयोग और सोशल मीडिया के तथ्य पार्खियों द्वारा इन सभी आरोपों की पोल खोल दी गई है।
यहां तुलनात्मक रूप से भाजपा जब केन्द्र में विपक्ष में थी तब का उसका आचरण देखना अनुचित नहीं होगा। एक ओर भाजपा ने कभी भी केन्द्र पर निराधार और तथ्यहीन आरोप लगाने या अपशब्दों के माध्यम से व्यक्तिगत अपमान करने जैसी राजनीति नहीं की, वहीं देश हित और रक्षा के मुद्दे पर सदैव सरकार का समर्थन किया। भाजपा, सत्ता विरोधी लहर के चलते, कुछ राज्यों में अपनी सरकार बनाने में सफलता हुई। मध्यप्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में जब भाजपा सत्ता में आई तो उसकी सरकारों ने रचनात्मक कार्य किए। सड़कों के जाल बिछाए, विद्युत प्रदाय को स्थिर बनाया, छोटे छोटे गांवों तक भी अपनी योजनाओं को पहुंचाया। गुजरात में मोदी ने वाइब्रेंट गुजरात जैसे कार्यक्रम कर निवेश बढ़ाया तो शिवराज द्वारा मध्यप्रदेश में जलाभिषेक अभियान जैसी अभिनव योजनाएं क्रियान्वित की गई। यह तथ्य है कि भाजपा शासित राज्यों में कोई रामराज स्थापित नहीं हो गया, परन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि जनता में यह भाव जागृत हुआ कि सरकार जनहित में कार्य कर रही है। पूर्ववर्ती सरकारों के सापेक्ष भाजपा का प्रदर्शन निश्चित ज्यादा विकास और कल्याण केन्द्रित था।
इस परिपेक्ष में, विगत दस वर्षों में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल किसी भी राज्य में एक भी ऐसा कार्य नहीं कर पाये हैं जो मिसाल बने। बंगाल में ममता हिंसा और जनसांख्यिकी परिवर्तन के बल पर सत्ता में काबिज है, तमिलनाडु में स्टालिन हिन्दू विरोधी राजनीति की रोटियां सेंक रहे हैं तो कांग्रेस महाराष्ट्र, बिहार, झारखण्ड आदि राज्यों में छोटे भागीदार के रूप में वोटों की जोड़ तोड़ और मुस्लिम वोट बैंक के साथ कहीं दलित तो कहीं जनजातियों को भ्रमित कर सत्ता प्राप्त कर रही है। परन्तु कहीं भी इनमें से कोई भी सरकार ऐसा कोई लक्षणीय कार्य नहीं कर रही या ऐसी कोई योजना क्रियान्वित नहीं कर रही जो भाजपा के शासन को बौना साबित कर सके।
विपक्ष अपनी सारी ऊर्जा नकारात्मक अभियानों में ही लगा रहा है। राहुल गांधी का, कुछ समय से, एक सूत्रीय कार्यक्रम हिंदुओं में दरारें उत्पन्न करना रहा है। अब अचानक उन्हें चुनाव आयोग को अपमानित करने में अवसर नजर आने लगा है। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि विश्व की बेहतरीन और विश्वसनीय चुनाव प्रणाली को वे बगैर तथ्य जाने, कोस रहे हैं। जिस निर्वाचन प्रक्रिया पर प्रत्येक भारतीय को गर्व होना चाहिए, राहुल उसे ही बदनाम करने में जुट हुए हैं। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा कि वे सतत गलत सिद्ध हो रहे हैं। उन्हें इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि निर्वाचन प्रक्रिया पर प्रश्न उठा कर वे देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था को ही सन्देह के घेरे में धकेल रहे हैं। इससे अधिक गैरजिम्मेदार व्यवहार क्या ही हो सकता है?
चूंकि राहुल और उनके सहयोगी बारम्बार ऐसे ही फर्जी मुद्दों को उठा उन पर बवाल खड़ा कर रहे हैं, तब इसे उनकी नादानी, गलती या मूर्खता कह कर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनके इस रवैये का हर स्तर पर विरोध किया जाना आवश्यक है, वहीं सरकार और न्यायालय से उम्मीद रहेगी कि इस सम्बंध में ठोस कार्यवाही और कड़े निर्णय लिए जाए।
विरोध प्रदर्शन प्रजातंत्र का अविभाज्य अंग है, अराजकता नहीं।
श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
21/08/2025