क्या सांसदों के अमर्यादित आचरण के लिए नियम बनाने होंगे..?

नियम, चोरों, बेईमानों और अपराधियों की वजह से बनते हैं।

यदि समाज में प्रत्येक व्यक्ति स्वभाव से परोपकारी, आचरण से नैतिक, व्यवहार से सात्विक और हृदय से सच्चा हो तब सम्भवतः न संविधान की आवश्यकता होगी न दण्ड संहिता की, न न्याय प्रणाली की और न ही पुलिस इत्यादि की! परन्तु ऐसी स्थिति एक दिवास्वप्न भर है। एक मछली तालाब सड़ा देती है। उसी प्रकार एक अपराधी या एक बदनीयत व्यक्ति भी नियम बनवा देता है। और फिर उसका पालन उन सभी लोगों को करना पड़ता है, जो इन नियमों के बगैर भी नैतिक आचरण करते हों।

देश के संविधान निर्माताओं की सोच थी कि देश में आम चुनाव के माध्यम से जो व्यक्ति चुन कर आएंगे और मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री जैसे पदों तक पहुंचेंगे उनका आचरण नैतिक रूप से शुद्धतम ही होगा। उसके बगैर वे ऐसे पदों तक पहुंच ही नहीं पाएंगे! दुर्भाग्य से संविधान निर्माताओं की यह सोच, यह आशा गलत साबित हुई। आजादी के कुछ ही वर्षों बाद से उच्चतम पदों पर भ्रष्टाचार के मामले प्रकाश में आने लगे। जाहिर है नियम भी बनने लगे। प्रावधानों में सुधार भी होते रहे।

परन्तु दशकों तक इन भ्रष्ट आचरण वाले सत्तासीनाें की भी एक मर्यादा बनी रही। यदि किसी पद पर रहते गिरफ्तारी की नौबत आ ही जाती, तो पदासीन व्यक्ति अपने पद से स्वयं ही त्यागपत्र दे देता था। परन्तु, अरविन्द केजरीवाल ने इस राजनीतिक शुचिता का पूर्णतः त्याग कर दिया। उन्हें छः महीने जेल में रहना पड़ा जिस दौरान वे शान से मुख्यमंत्री के पद पर बने रहे। इन छः महीनों में वे मुख्यमंत्री की किसी भी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर पाए। परन्तु उन्हें ऐसा नहीं लगा कि त्यागपत्र दे कर दल के किसी अन्य सदस्य को मुख्यमंत्री बना दे। दिल्ली छः महीनों तक ऐसे मुख्यमंत्री को झेलती रही जो जेल में था और पूरी तरह निष्क्रिय था। यह अपने आप में अनहोनी घटना थी। संविधान निर्माताओं ने ऐसी किसी परिस्थिति की अपेक्षा ही नहीं की थी, इसलिए संविधान में इस सम्बंध में कोई विधान था ही नहीं। निर्लज्ज्वाल ने इसी कमी का लाभ लिया और त्यागपत्र नहीं दिया।

इसी परिपेक्ष में दो दिन पूर्व गृहमंत्री अमित शाह द्वारा संसद में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया, जिसमें प्रावधान है कि किसी भी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति को किसी कारण से यदि 30 से भी अधिक दिनों की अवधि के लिए जेल जाना पड़ता है तो, उसे पद त्याग करना पड़ेगा। और यह भी कि यदि वह त्यागपत्र नहीं देता है, तब भी उसे पद मुक्त मान लिया जाएगा। आश्चर्यजनक रूप से विपक्ष इस प्रस्ताव को ले कर सत्तापक्ष पर टूट पड़ा। सदन में लगातार नारे बाजी होती रही, हंगामा होता रहा।

आज के राजनीतिक परिदृश्य में सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री भाजपा के हैं। प्रधानमंत्री भाजपा के हैं। निश्चित ही इस नियम का प्रभाव फिलहाल सबसे ज्यादा भाजपा पर ही पड़ सकता है। परन्तु विपक्ष को इस प्रस्ताव में हिटलर और तानाशाही नजर आ रहे हैं। विपक्ष का दावा है कि इस नियम का दुरुपयोग होगा और उनके नेतृत्व को झूठे आरोपों में फंसा कर उन्हें पद से हटा दिया जाएगा! कैसे? जेल सरकार नहीं न्यायालय के आदेश से भेजा जाता है। फिर सरकार इसका दुरुपयोग कैसे करेगी? आज भी यह नियम तो लागू है ही कि यदि किसी व्यक्ति को दो वर्षों से अधिक के कारावास की सजा होती है तो उसकी सदन से सदस्यता स्वयंमेव रद्द हो जाएगी और वह व्यक्ति आने वाले छः वर्षों तक चुनाव नहीं लड़ पाएगा। किस सरकार ने कितना ही दुरुपयोग कर लिया? जब केजरी द्वारा छः माह तक जेल में रहकर भी त्यागपत्र नहीं दिया उस दौरान एक भी विपक्षी दल द्वारा उनकी निंदा नहीं की गई थी। न ही त्यागपत्र मांगा गया था।

पहले अनुचित आचरण करना और फिर उस पर रोक लगाने हेतु बनाए जा रहे नियमों का यह कह कर विरोध करना कि यह तानाशाही है। विपक्ष का यह रवैया कहीं आने वाले परिवर्तनों के लिए पूर्व तैयारी तो नहीं? विपक्ष के सांसद, संसद में उपलब्ध स्वतंत्रता का लगातार दुरुपयोग कर रहे हैं। संसद में गुंडागिरी, अभद्रता और निर्लज्जता के नित नए प्रतिमान खड़े किए जा रहे हैं। वस्तुत: पुनः एक बार संविधान निर्माताओं की अपेक्षा के विपरीत कईं सांसद, अपने दल के श्रेष्ठियों के बढ़ावे पर, अमर्यादित आचरण को अपना अधिकार समझने लगे हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि सरकार आने वाले समय में कुछ नियम बनाने को मजबूर हो जाए!

जो भी हो, अपनी निर्लज्जता के चलते ही सही, केजरी का नाम तो इतिहास में जमा हो ही गया। उन्हीं के चलते यह नियम बन रहा है। सम्भवतः केजरी इसे अपनी उपलब्धि मानेंगे। समर्थकों द्वारा सम्मान, सत्कार और विजय जुलूस भी निकाले जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। अन्ततः निर्लज्जता प्रदर्शन हेतु भी प्रेरणा तो लगती ही है।

श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
22/08/2025

2 thoughts on “क्या सांसदों के अमर्यादित आचरण के लिए नियम बनाने होंगे..?”

  1. Niyam to banana hi chahiye bt unhe follow bhi karna chahiye jo shayad polititions ke liye possible nahi ho payega

    1. Sreerang Pendharkar

      संसद के अन्दर के फिलहाल जो नियम है उनका सामान्यतः पालन होता ही है। दरअसल, संविधान निर्माताओं द्वारा सांसदों के संसद में आचरण पर लगभग कोई प्रतिबंध है ही नहीं। उन्हें लगा होगा कि जो यहां तक पहुंचेगा वह परिपक्व हो होगा। इसलिए उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी। परन्तु आज के विपक्ष के सांसद लगातार इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रहे हैं। इसलिए ऐसे नियम बनाने की आवश्यकता महसूस हो रही है।

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