GST में बड़ी राहत…दीर्घ कालीन योजना का परिणाम

कल GST काउंसिल द्वारा GST के करों में बड़े बदलाव कर अधिकांश करों में उल्लेखनीय कमी की गई है। यह एक प्रभावी और आम जन हिताय कदम तो है ही, अपने आप में अत्यन्त साहसिक निर्णय भी है। सामान्य गृहपयोगी कईं वस्तुएं पहले से सस्ती होंगी और इसकी वजह से सहज ही सामान्य व्यक्ति को लाभ मिलेगा। उसके खर्च कम होंगे, बचत बढ़ेगी और उसका उपभोग बढ़ेगा। बढ़ता उपभोग मांग पैदा करता है जिससे उद्योगों और व्यापार को बढ़ावा मिलता है और अन्ततः सरकार को और अधिक राजस्व प्राप्त होता है।

वस्तुत: करों में यह रियायत एक दीर्घ कालीन योजना का हिस्सा है। स्वतंत्रता के पश्चात से देश में करों की दर अत्यन्त ऊंची रखने की संस्कृति स्थापित की गई थी। इन्दिरा गांधी के कार्यकाल में एक समय आयकर की सबसे ऊंची दर 97.50% प्रतिशत थी। आज की पीढ़ी के लिए इस पर यकीन करना भी मुश्किल है। इतिहास साक्षी है कि जब भी करों की दरें बहुत अधिक होती है, उसकी वसूली की व्यवस्था भ्रष्ट, शिथिल और अप्रभावी रहती है। सीमा से अधिक कर, सामान्य व्यापारी और व्यक्ति को करों की चोरी के लिए प्रेरित करता है। राजस्व अधिकारी यह जानते और समझते हैं कि इतना अधिक कर दिया ही नहीं जा सकता। एक तरह से कर चोरी एक प्रकार की बाध्यता बन जाती है। दूसरी ओर अधिकारी इस बाध्यता का लाभ उठा कर नियमों का आतंक बनाए रखते हैं और उसकी आड़ में भ्रष्टाचार फलता फूलता रहता है। इसके विपरीत, यदि करों की दरें सीमित रखी जाए तो अधिकांश लोग कर दे कर स्वच्छ धन अर्जित कर, निर्भीक जीवन जीना पसंद करते हैं। ऐसी स्थिति में कर वसूली सख्त हो सकती है। परन्तु यह स्थिति राजनेताओं और अधिकारियों को कम रास आती है क्योंकि नियत कर चुकाने वाला व्यक्ति उनके अनुग्रह की भीख पर निर्भर नहीं होता है। 1991 तक ऊंची कर दरों वाली प्रणाली ही देश में लागू थी। तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव में वित्त व्यवस्था और कर प्रणालियों में क्रांतिकारी बदलाव किए और कर दरों को घटा कर सीमा में लाने का दौर शुरू किया। यह प्रयास अब तक जारी है और दो दिन पूर्व की गई घोषणाएं इस दिशा में एक बड़ा कदम है।

2017 में वर्तमान सरकार द्वारा ऐतिहासिक कार्य करते हुए देश में GST व्यवस्था प्रारम्भ की गई। यह कर पाना लगभग असंभव था। राज्यों को इस बात पर राजी करना कि उन्हें मिलने वाले तमाम कर अब केंद्र को मिलेंगे और केंद्र उन्हें उनके हिस्से की राशि देगा, अकल्पनीय था। राज्य सरकारें, विशेषतः विपक्ष की राज्य सरकारें प्राप्त होने वाले राजस्व को छोड़ कर केन्द्र से प्राप्त होने वाले आवंटन पर निर्भर होने को राजी होना कदापि आसान नहीं था। परन्तु स्वर्गीय अरुण जेटली के नेतृत्व में इस सरकार ने यह असम्भव लक्ष्य हासिल किया और विगत 8 वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा निष्पक्ष तरीके से राज्यों को उनका आवंटन तो प्रदान किया ही गया, अपने हिस्से में से भी उन्हें विपुल राशियां प्रदान की। इस वजह से राज्यों का, विपक्षी राज्यों का भी, केंद्र सरकार में विश्वास मजबूत हुआ और GST व्यवस्था शनै शनै स्थिर और स्वीकृत हो गई। इस दौरान व्यापारियों और उपभोक्ताओं को निश्चित ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि कर की दरें भी ऊंची थी और क्रियान्वयन भी सख्त होता जा रहा था। परन्तु इस वर्ष सरकार ने प्रारम्भ से ही करों के बोझ को कम करने की मंशा दिखाई है। वार्षिक बजट के दौरान कर मुक्त आय को 12 लाख तक बढ़ाना, मध्यम वर्ग के लिए बहुत बड़ा तोहफा था। और अब GST की दरों में भारी कमी की गई है।

गत 8 वर्षों से सरकार, व्यापारी और आम आदमी सभी ने राजस्व के प्रति जो प्रतिबद्धता दिखाई है, ये सौगात उसी का परिणाम है। इस दृष्टि से ये सुधार ऐतिहासिक हैं। करों की दरें कम होने से निश्चित ही और अधिक लोग करों के भुगतान को बेहतर विकल्प मानेंगे। करदाताओं का दायरा बढ़ेगा। अधिक से अधिक लोग कर चुकाएंगे तभी दरें कम रह सकती है। सरकार ने एक सकारात्मक पहल की है अब व्यापारियों और आम आदमी की बारी है। उन्हें नियमों के पालन के प्रति प्रतिबद्धता दिखानी होगी तभी ये सुधार स्थाई व्यवस्था बनेंगे।

राजनीतिक स्तर पर GST लागू करना अपने आप में एक अदम्य साहसिक निर्णय था। विश्व के अधिकांश देशों में जब GST लागू हुआ तो, अर्थव्यवस्था को धक्का लगा और परिणामस्वरूप उसे लागू करने वाली सरकार को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। इसीलिए भारत में महानतम अर्थशास्त्री के नेतृत्व में, वादे के बावजूद, GST को लागू नहीं किया गया था। परन्तु वर्तमान सरकार ने देश हित में यह साहस दिखाया। यह इस सरकार की राष्ट्र हित सर्वोपरि की नीयत ही थी जिसकी वजह से यह कर प्रणाली लागू हो पाई है। राष्ट्र हित को सत्ता में बने रहने की लालसा के ऊपर प्राथमिकता दी गई। किसी भी नई व्यवस्था को लागू करने में कठिनाइयां आती ही हैं जो यहां भी आई। विपक्षी दलों ने जम कर राजनीति भी की। परन्तु सरकार पूरे विश्वास और दृढ़ता के साथ इन कठिनाइयों से निपटती रही। 50-60000 करोड़ प्रतिमाह से प्रारंभ हुआ राजस्व 200000 करोड़ से ज्यादा होने लगा। आज करों में दी गई राहत से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह व्यवस्था अब परिपक्व और सर्व हिताय बन चुकी है।

स्वस्थ प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए आवश्यक है कि सरकार जनहित में योजनाएं क्रियान्वित करें और जनता नियमों का पालन करे। यह तभी सम्भव होता है जब जनता का सरकार की नीयत पर विश्वास हो वहीं सरकार जन हित को सर्वोच्च प्राथमिकता दे। GST में घोषित सुधार इस दिशा में एक मजबूत कदम है।

श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
05/09/2025

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *