बीते दिन की दो महत्वपूर्ण घटनाएं…
1. अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा बताया गया कि अब अमेरिका परमाणु परीक्षण करेगा! जब उनसे पूछा गया कि ऐसा क्यों? तो उनका उत्तर था कि और देश भी ऐसा कर रहे है। उत्तर कोरिया कर रहा है, रूस कर रहा है और पाकिस्तान कर रहा है। तो हम क्यों नहीं कर सकते?
अमेरिका का राष्ट्रपति कह रहा है कि कुछ देश चोरी छिपे परमाणु परीक्षण कर रहे हैं। देखा जाए तो इस बयान पर हड़कंप मच जाना चाहिए था। एक जमाने में परमाणु परीक्षण करने पर उस देश पर प्रतिबंध लाद दिए जाते थे। भारत पर भी लागू किए गए थे।
परन्तु ट्रंप अपने ऊल जलूल वक्तव्य देते रहने की छवि को ले कर इतने बदनाम हो चुके हैं और दुनिया में उनकी विश्वसनीयता इतनी गिर चुकी है कि किसी ने इस वक्तव्य को गंभीरता से लिया ही नहीं।
2. दूसरी घटना और भी हैरत अंगेज है। चीन के राष्ट्रप्रमुख शी जिन पिंग दक्षिण कोरिया गए। वहां सार्वजनिक रूप से उन्होंने कोरिया के राष्ट्रपति और उनकी पत्नी को उपहार स्वरूप दो शाओमी मोबाइल फोन प्रदान किए। कोरियन राष्ट्रपति ने उपहार स्वीकार करते हुए पूछ लिया कि क्या ये फोन ‘safe’ हैं? खिसियाते हुए शी ने कहा कि आप चेक करवा लें!
एक वाक्य में कोरियन प्रधानमंत्री ने बता दिया कि शी की वास्तविक इज्जत कितनी है। चीन कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, विश्वसनीय नहीं है!
दोनों घटनाओं में आज विश्व के सबसे शक्तिशाली दो देशों के प्रमुखों की विश्वसनीयता की बदहाल स्थिति नजर आती है। ये शुभ नहीं है। विश्व के सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों की विश्वसनीयता इतनी कम शायद ही कभी रही हो। यह वैश्विक स्तर पर राजनीतिक दिवालियापन और मूल्यों के ह्रास को उजागर करने वाली घटनाएं हैं। अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों को योग्य राष्ट्रप्रमुख नहीं मिल रहे हैं। विगत 5 वर्षों में इंग्लैंड और फ्रांस में चार चार प्रधानमंत्री बदले जा चुके हैं। इंग्लैंड में एक भारतीय को प्रधानमंत्री नियुक्त करना पड़ा था। हम भारतीय भले ही इस बात पर प्रसन्न हो ले, परन्तु उस राष्ट्र के लिए यह शर्म का विषय है जो राष्ट्र मात्र 75 वर्षों पूर्व आधी दुनिया पर राज कर रहा था।
वहीं हाल अमेरिका का है। दोनों प्रमुख दलों के राष्ट्रपति पद के दावेदार लगभग 80 वर्षों के वृद्ध हैं। अगली पीढ़ी में अधिकांश उम्मीदवार भारतवंशी हैं जिनमें कमला हैरिस, निक्की हैली, तुलसी गबार्ड और विवेक रामास्वामी शामिल हैं। वर्तमान राष्ट्रपति के अभियोजन की बातें प्रसार माध्यमों में चलती रहती है।
चीन में शी ने स्वयं को मृत्यु पर्यंत राष्ट्रध्यक्ष मनोनीत करवा रखा है। उनके नेतृत्व में चीन, करोना वायरस फैलाने का दोषी माना गया है। इस वजह से दुनिया ने क्या झेला है कितना झेला है इससे हम सभी वाक़िफ है। परन्तु वे फिर भी सत्तासीन हैं। परन्तु निश्चित ही, आज चीन आर्थिक मोर्चे पर गम्भीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। शी के कार्यकाल में चीन ने क्या झेला है यह तो उनके सत्ताच्युत होने के पश्चात ही उजागर होगा।
यदि समाज का नेतृत्व इतने हल्के नेताओं के पास रहेगा जिन पर किसी को विश्वास ही नहीं है, तो सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक ह्रास अवश्यंभावी हो जाते हैं। आज अमेरिका और चीन दोनों ही विश्व की सबसे बड़ी शक्तियां है। यदि वहां कुछ घटित होता है तो इसका प्रभाव सभी देशों पर पड़ेगा। यह अत्यन्त चिंता का विषय है कि इन देशों की बागड़ोर ऐसे व्यक्तियों के हाथों में है जिनकी विश्वसनीयता पर गम्भीर प्रश्नचिन्ह लगे हुए हैं।
आशा करें कि भारतीय नेतृत्व इन घटनाक्रमों को ध्यान से देख रहा है और आवश्यक सावधानियां सुनिश्चित कर रहा है।
श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
05/11/2025

