निकटस्थ मित्र की पत्नी के स्वास्थ्य की समस्या के चलते इंदौर के ‘विशेष जुपिटर’ अस्पताल जाना हुआ। इस निमित्त से मन में कुछ विचार बन बिगड़ रहे हैं। सोचा जो मन में आ रहा है वह मित्रों से साझा कर ही लूँ!
पहले तो कुछ शब्द, ‘विशेष जुपिटर‘ अस्पताल के लिए! विशेष के नाम से इंदौर में कईं वर्षों से अस्पताल रहा है और उसी समूह द्वारा कुछ वर्ष पहले ‘विशेष जुपिटर‘ नामक एक विशाल और भव्य अस्पताल निर्मित कर, नगर और आस पास के क्षेत्र को स्वास्थ्य के सम्बंध में एक शानदार विकल्प उपलब्ध कराया गया है। व्यापार जगत में ग्राहक का संतोष काफी महत्वपूर्ण होता है परन्तु स्वास्थ्य क्षेत्र में इस संबंध जागरूकता कम ही देखने को मिलती है। मांग और पूर्ति का संतुलन आज भी एकतरफा अस्पतालों के पक्ष में है और इसलिए वे उतना ही करते हैं जिसके बगैर काम चल ही न सके। परन्तु ‘विशेष जुपिटर‘ इस सोच को बहुत पीछे छोड़कर निर्मित किया गया है। निश्चित ही इसके पीछे अस्पताल के प्रवर्तकों की दृष्टि और संवेदनशीलता रही है। रोगियों और उनके परिजनों के लिए अत्यन्त उच्च श्रेणी की सुविधाओं का नियोजन किया गया है।
‘विशेष जुपिटर‘ में स्वच्छता और शुचिता के मापदण्ड अन्य अस्पतालों से बहुत ऊपर है। चिकित्सकीय सुविधाएं भी उच्चतम स्तर की है। परिसर विस्तीर्ण है इसलिए पार्किंग आदि की भी कोई समस्या नहीं रहती। दिन प्रतिदिन की व्यवस्थाएं, प्रक्रियाएं, परिजनों के साथ सूचनाओं का आदान प्रदान आदि सभी स्वचालित व्यवस्था के तहत चलता रहता है। अब तक जो भी मित्र-सम्बन्धी विशेष गए हैं, संतुष्ट ही लौटे हैं। ऊपर जिक्र किए गए मित्र की पत्नी, असामान्य ECG रिपोर्ट आने पर भर्ती की गईं थी। बमुश्किल 24 घंटों में, आवश्यक जांचें कर, उनकी छुट्टी कर दी गई। बताया गया कि उनकी शिकायत हृदय संबंधी समस्या की वजह से न हो कर सामान्य मांसपेशीय दर्द है। मित्र प्रसन्न है कि कोई गैरजरूरी जांचे नहीं की गई और भयभीत कर बिल बढ़ाने के उपक्रम भी नहीं किए गए।
इसी सन्दर्भ में कुछ और भी विचार हैं जिन पर हम सभी को चिंतन करना चाहिए।
यदि किसी की तबियत खराब होती है, तो उससे या उसके परिजनों से मिलने जाने का एक आम रिवाज है। निश्चित ही, रोगी और परिजनों को इस तथ्य से बल मिलता है कि वे अकेले नहीं है और कुछ अपने, उनके संघर्ष में, उनकी कठिन परिस्थिति में उनके साथ है। कईं मित्र ऐसे अवसरों पर काफी समय रोगी-परिवार के साथ व्यतीत करते हैं, कुछ धन के बारे में पूछताछ कर लेते हैं तो कुछ अन्य, दवाइयों आदि की उपलब्धता में सहयोग करते हैं। यह हमारे समाज की एक ऐसी विशिष्टता है, जिस पर हमें गर्व करना चाहिए।
परन्तु मोबाइल के युग में इस सन्दर्भ में कुछ परेशानियां भी जुड़ गई है। जैसी ही किसी व्यक्ति के अस्वस्थ होने का समाचार दूर दराज के मित्रों- संबंधियों तक पहुंचने लगता है, अस्पताल में स्थित रोगी के परिजन के पास फोन कॉल्स का तांता लग जाता है। प्रत्येक व्यक्ति जानना चाहता है कि क्या हुआ है, कब? कैसे? कौन डॉक्टर? क्या रिपोर्ट? क्या संभावना? आदि आदि ..। हालांकि दूर बैठे इन परिजनों को चिंता समझी जा सकती है, परन्तु उन्हें भी अस्पताल में उपस्थित व्यक्ति की दशा समझना आवश्यक होता है। रोगी ICU में हैं, कईं संभावनाएं हैं, भिन्न भिन्न परीक्षण चल रहे हैं, चिकित्सकों से बातचीत चल रही है, रोगी की पीड़ा, परेशानी सामने हैं….ऐसी अवस्था में सतत फोन सुनना और प्रत्येक दूरस्थ रिश्तेदार को वही घटनाक्रम सुनाते रहना, कईं बार अत्यन्त कष्टप्रद हो जाता है।
अस्पताल में उपस्थित परिजन, जो निश्चय ही रोगी का निकटस्थ होता है, भावनात्मक रूप से काफी बुरे दौर से गुजर रहा होता है। अपने आत्मीय को कष्ट में देखना किसी को भी झकझोर देता है। ऊपर से अस्पताल की औपचारिकताएं और चिकित्सकों से परामर्श के दौर भी चलते रहते हैं। ऐसे में “हमें बताया ही नहीं” या “फलां डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाया?” या “अमुक काढ़ा आजमा लो, हमारी मौसी तो तुरंत चंगी हो गई थी” जैसे ज्ञान उसे परेशान हो करते हैं। आपकी चिंता और जानकारी पाने की उत्सुकता समझी जा सकती है, पर बेहतर होगा कि आप उस परिजन को text संदेश भेज कर छोड़ दे। उसे अपनी सुविधा से देख कर जवाब देने दें। हद तो तब हो जाती है जब कुछ लोग अपनी चिंता दिखाने के लिए बारंबार फोन लगाते रहते हैं। और फिर बातचीत के अन्त में “मुझे update करते रहना” भी रहता ही है।
सैकड़ों किमी दूर रह कर आपका चिन्ता जताना, अस्पताल में रोगी की देखभाल में जुटे परिजन के लिए सिरदर्द होने की प्रबल संभावना रहती है। बेहतर है कि आप एक सन्देश के माध्यम से यह सूचित कर दें कि आप चिंतित है और यह कि आप रोगी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। आगे भी संदेश के माध्यम से ही सूचनाएं लेते रहे, वह भी दिन में एक बार! फोन करने से बचें।
यही आपके मित्र / सम्बन्धी के लिए आपकी मदद होगी!
श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
01/12/2025

