SIR प्रक्रिया से बिहार सहित पूरे विपक्ष में हड़कंप क्यों मचा है?

2019 में जब मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा ऐतिहासिक बहुमत के साथ सत्तासीन हुई थी, तब NDTV पर नतीजों पर चर्चा के दौरान अत्यन्त हताश योगेन्द्र यादव ने कहा था कि वे मतदाताओं का गिरेबान पकड़ कर कहना चाहते हैं “बेवकूफों…” (तुमने ये क्या किया है?). 

योगेन्द्र यादव की कोई राजनीतिक हैसियत नहीं है, इसलिए वे ऐसा कहने की जुर्रत कर सकते हैं। मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के मुखिया, कितना ही चाहे, मतदाता को सरेआम बेवकूफ नहीं ठहरा सकते! और मतदाता, उनकी बजाय भाजपा को तरजीह देता जा रहा है। स्वाभाविक है, बहुत छटपटाहट का माहौल है। एक तरह से मतदाता उनके मुंह पर हाथ रख कर थप्पड़ पर थप्पड़ जमा रहा है। सुना है कि एक शीर्ष नेता पराजयों के शतक के नजदीक पहुंच चुके हैं! ऐसी स्थिति में विपक्ष का शीर्ष नेतृत्व और उनके चमचे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि किसे दोष दें? स्वयं को दोष देने जितनी न ईमानदारी है और न साहस। इधर मोदी को गरियाते हुए 25 वर्ष गुजर चुके हैं, परन्तु मतदाता को मोदी से विमुख नहीं करवा पाए हैं। 

इस असमंजस के बीच पिछले कुछ समय से विपक्ष द्वारा चुनाव आयोग को निशाना बनाया जा रहा है। सबसे पहले EVM पर बयानबाजी प्रारम्भ हुई। सर्वोच्च न्यायालय में याचिका पर याचिका दायर हुई। अंततः सर्वोच्च न्यायालय को कहना पड़ा कि EVM दोष रहित है और यह कि इस विषय पर याचिकाएं लगाना बन्द किया जाए। 80 के दशक के चुनाव, विशेषतः उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु आदि राज्यों में, रक्तरंजित चुनाव हुआ करते थे। मतपत्रों का युग था। बाहुबलियों के गुंडे मतदान केन्द्रों पर कब्जा कर मतपत्रों पर जबरन ठप्पे लगा कर सामान्य मतदाताओं को भगा दिया करते थे। इस घटना को बूथ कैप्चरिंग का रौबदार नाम दिया गया था। 90 के दशक में EVM का इस्तेमाल शुरू हुआ और आने वाले कुछ वर्षों में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव पूर्णतः EVM द्वारा होने लगे। EVM किसी भी प्रकार से किसी बाहरी नेटवर्क आदि से जुड़ी नहीं होती है। हमारे घरों में रखी किसी वाशिंग मशीन या फ्रिज की तरह प्रत्येक EVM एक स्वतंत्र इकाई होती है। इसलिए ये हैक नहीं हो सकती। यदि EVM में गड़बड़ी करना हो तो आम चुनाव में  उपयोग आने वाली लगभग 55 लाख EVM उपकरणों में से प्रत्येक को रीसेट करना होगा उसके पुर्जों में बदलाव करना होगा। सैद्धांतिक रूप से भले यह सम्भव हो, व्यावहारिक रूप से यह असम्भव ही है। इतने बड़े स्तर पर गड़बड़ी को छुपाए रखना असम्भव है। परन्तु सभी तर्कों से परे, विपक्ष लगातार EVM को अपनी हार के लिए जिम्मेदार ठहराता आया है। हालांकि, जनता द्वारा इन दावों को अधिक महत्व नहीं दिया गया। 

इसी बीच बिहार में इसी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के तारतम्य में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूचियों की गहन छानबीन का निर्णय लिया गया है। इस प्रक्रिया को विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) का नाम दिया गया है जिसे प्रसार माध्यमों में सामान्यतः SIR के नाम से उल्लेखित किया जा रहा है। 2003 के पश्चात बिहार में मतदाता सूची में जो नाम जुड़े हैं, उन्हें अपने जन्म और नागरिकता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने होंगे। चुनाव आयोग द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया काफी सघन और पारदर्शी है। सभी संभावित समस्याओं को अपेक्षित रखते हुए उनके लिए उचित व्यवस्थाएं रखी गई है। हां, यह स्पष्ट है कि यदि 2003 के पश्चात कोई व्यक्ति विदेश से, अवैध तरीके से देश में प्रवेश कर बिहार आ कर बसा है तब उसका नाम सूची से हट जाएगा। 

SIR के अब तक जो परिणाम देखने में आए हैं वे चौंकाने वाले हैं। बिहार में 7 करोड़ से अधिक मतदाताओं को SIR के फॉर्म भेजे गए थे। इनमें से 20 लाख मतदाता मृत हो चुके हैं। अगले 28 लाख मतदाता स्थाई रूप से बिहार से बाहर रह रहे हैं और वहां मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। 6 लाख मतदाता बिहार में ही एक से अधिक स्थानों पर सूचीबद्ध पाए गए जबकि 1 लाख मतदाता गायब हैं। 7 लाख फॉर्म अब तक जमा नहीं हुए हैं। इस तरह लगभग 62 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से बाहर होना तय है। 

स्वभावत: बिहार में हड़कंप मच हुआ है। विपक्ष बिलबिला रहा है। चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। चुनाव आयोग द्वारा अधिकारों के दुरुपयोग कर चुनाव के नतीजों को प्रभावित करने के 100% सबूत मिलने के दावे किए जा रहे हैं। चुनाव आयोग के अधिकारियों को सरे आम धमकियां दी जा रही हैं। परन्तु कोई सबूत अब तक प्रस्तुत नहीं किया गया है।

इस बीच वोटर कार्ड को आधार से लिंक करने का निर्णय लागू हो गया है। अकेले मध्यप्रदेश में 55 लाख फ़र्जी मतदाता प्रकाश में आए हैं। जिस घर में मात्र 5 लोग रहते हैं, उस पते पर 60 लोगों के नाम से मतदाता पत्र जारी हुए पड़े हैं। यह हाल मध्यप्रदेश में है, जो सीमावर्ती राज्य नहीं है। स्वभावत: सीमावर्ती राज्यों में घुसपैठ की वजह से फ़र्जी मतदाताओं का अनुपात और अधिक होने की संभावना है। 

स्पष्ट है कि गुजरे दशकों में एक तन्त्र विकसित किया गया है जिसके तहत घुसपैठियों को भारत में घुसने दिया जा कर उनके कागजात भी बनवा दिए जाते हैं। ये घुसपैठिए, इन कागजों के बल पर पूरे देश में फैल चुके हैं। यह तादाद करोड़ों में बताई जाती है। जाहिर है, इन्हें न भारत की संस्कृति से कोई लगाव है, न इतिहास से और न ही भारत की प्रगति से ही इनका कोई सरोकार है। परन्तु ये भारत के भविष्य निर्माण को मतदान के माध्यम से प्रभावित कर रहे हैं। निश्चित ही इसके पीछे गहरी साजिश और खौफनाक इरादे हैं। सम्भवतः अत्यन्त क्षुद्र लाभ के लिए कुछ राजनीतिक दल यह सब कुछ होने दे रहे हैं।

परन्तु विपक्ष, तमाम तथ्यों को नकारते हुए, लगातार चुनाव आयोग को ही पक्षपातपूर्ण गतिविधियों का  दोषी बता रहा है। सच तो यही है, कि SIR की प्रक्रिया ने विपक्षी दलों की लम्बे समय से चली आ रही तिकड़म को ध्वस्त कर दिया है। बिहार में पिछले चुनाव में कईं विधानसभा क्षेत्रों के परिणाम 5000 से भी कम मतों के अन्तर से विपक्ष के पक्ष में आए थे। इन कम अन्तर की सीटों पर इस प्रक्रिया से निर्णायक फर्क पड़ सकता है। बहरहाल, बौखलाया विपक्ष दिल्ली में संसद की कार्यवाही को चलने न देकर अपनी झुंझलाहट दिखा रहा है। जब सटीक तर्कों का अभाव होता है तब हुल्लड़ और शोर शराबे का सहारा लिया जाता है। इस प्रक्रिया को सर्वोच्च न्यायालय में भी चुनौती दी गई है। इस प्रक्रिया पर स्थगन की मांग की गई थी, परन्तु न्यायालय ने स्थगन आदेश देने से इनकार कर दिया। इस माह 28 तारीख को सुनवाई तय हुई है।  

विडम्बना यह है कि इन कुत्सित प्रयासों के चलते प्रबल संभावना है कि इस हुल्लड़बाजी से तंग आ कर मतदाता भाजपा के पक्ष में और अधिक मतदान करें। लेकिन क्या तब भी विपक्ष अपनी करतूतों से बाज आएगा?

श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर 

25/07/2025

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *