SIR का जम कर विरोध किया जा रहा है। इसके विरोध में न्यायालयों में याचिकाओं का सिलसिला जारी है। यह दुष्प्रचार भी चलाया जा रहा है कि प्रक्रिया अत्यन्त जटिल होने से लोग परेशान हो रहे हैं। और यह भी कि ऐसा सब जानबूझ कर किया जा रहा है ताकि लाखों लोग मतदान से वंचित रह जाए। यह भी बताया जा रहा है कि काम के बोझ से BLO की मृत्यु तक हो रही है।
लगातार पराजय का सामना कर रहे विपक्ष के नेतृत्व को यह समझ ही नहीं आ रहा है कि झूठ पर चुनाव नहीं जीते जा सकते। दरअसल, केजरीवाल की असाधारण सफलता ने विपक्षी नेतृत्व की झूठ के प्रति निष्ठा को बहुत बलवान कर दिया है। केजरीवाल ने झूठ बोलने की विधा को शास्त्र बना दिया था। उनकी राजनीति का आधार ही लगातार बिना पलक झपकाए झूठ बोलने रहना और एक झूठ पकड़ा जाने पर बगैर किसी पश्चाताप के संपूर्ण निर्लज्जता के साथ दूसरा झूठ पकड़ लेना था। राहुल गांधी जब कांग्रेस के सर्वेसर्वा हुए तब उनके सामने दो विकल्प थे। एक, मोदी की विकास आधारित राजनीति और दूसरी केजरी की नित नए झूठ गढ़ते रहने की! जाहिर है राहुल को यह दूसरा विकल्प ज्यादा सरल और स्वाभाविक नजर आया। इसलिए 2019 के पहले से ही सिरे से झूठ बोलने का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। राफेल, पेगासस, EVM, संविधान में परिवर्तन, वोट चोरी जैसे तमाम अभियानों की बुनियाद ही झूठ पर रही है। इस प्रकार के अभियान की विशेषता यह रहती है कि इसमें कुछ करना नहीं पड़ता, बस बोलना भर रहता है!
अभी वर्तमान में कुछ राज्यों में SIR प्रक्रिया जारी है। इसके बारे ने झूठ फैलाया जा रहा है कि यह प्रक्रिया बहुत जटिल है और यह कि आधार वर्ष 2003 की मतदाता सूची में अपना नाम ढूंढना एक बहुत कष्टप्रद और लगभग असम्भव कार्य है। तर्क दिया जा रहा है कि इस वजह से कईं लोग मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वाने से वंचित रह जाएंगे!
वास्तविकता यह है कि प्रक्रिया अत्यन्त सरल और चन्द मिनटों में पूरी होने वाली है। 2003 की जो सूची नेट पर उपलब्ध की गई है उसमें सिर्फ तीन जानकारियां मांगी जाती है, और ये जानकारियां देते ही आपके मतदान केंद्र की बमुश्किल 8-10 पृष्ठों की सूची उपलब्ध हो जाती है, जिसमें अपना नाम खोजने में मुश्किल से दो तीन मिनट लगते हैं। इतनी ही सरल मुख्य फॉर्म भरने की प्रक्रिया भी है। पूरी प्रक्रिया 8-10 मिनट की भर है। यदि आप ऑन लाइन फॉर्म नहीं भरते तो आपके क्षेत्र के BLO आपसे एक कागजी फॉर्म भरवा कर यह एंट्री कर देते हैं।
जैसा कि बताया गया है कि यह प्रक्रिया 2003 के पश्चात हुई ही नहीं है। जाहिर है, बीते 22 वर्षों में लाखों लोगों की मृत्यु हो चुकी है, लाखों एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित हो चुके हैं। कईं लोगों के नाम एक से अधिक स्थानों पर मतदाता सूची में दर्ज है। कईं लोग विदेश जा चुके हैं। जाहिर है, मतदाता सूचियों का परिष्करण एक आवश्यक और स्वाभाविक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया पहले भी 9 बार लागू की जा चुकी है। परन्तु उन अवसरों पर विपक्ष द्वारा कभी भी इसे मुद्दा नहीं बनाया गया, क्योंकि तब का विपक्ष संवैधानिक प्रक्रियाओं का सम्मान करता था ।
अभी बिहार में कुछ माह पूर्व ही यह प्रक्रिया संपन्न हुई। विपक्ष तब भी शोर मचा रहा था। परन्तु चुनाव संपन्न हो कर नई सरकार भी गठित हो चुकी है और इस दरमियान एक भी ऐसा दावा प्रस्तुत नहीं हुआ है जिसमें कोई व्यक्ति यह कहे कि उसका नाम मतदाता सूची में नहीं है। फिर विपक्ष किस आधार पर ये मनगढ़ंत आरोप लगा रहा है कि मतों की चोरी हो रही है या मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं?
इतनी पुख्ता व्यवस्था की प्रशंसा करने के बजाय विपक्ष बगैर आधार के चुनाव आयोग को बदनाम कर अपनी ही विश्वसनीयता घटाने में जुटा हुआ है। ममता बनर्जी और अखिलेश जैसे नेताओं की छटपटाहट देख कर ऐसे आरोप विश्वसनीय लगने लगे हैं जिनमें कहा जाता है कि मृत और स्थानांतरित मतदाताओं के नाम पर अवैध घुसपैठियों से मतदान करवा लिया जाता था। ये घुसपैठिए इन क्षेत्रीय दलों के वोट बैंक बन चुके थे। अभी घबराहट में बंगाल सीमा से घुसपैठियों के बांग्लादेश लौटने का तांता लगा हुआ है। पत्रकार ऐसे लोगों से बातचीत कर रहे हैं। उन लोगों के पास फर्जी आधार, मतदाता पत्र आदि तमाम कागजात मौजूद हैं, जिनके सहारे वे कुछ वर्षों से भारत में जमे हुए हैं और रोजगार भी प्राप्त कर रहे हैं। परन्तु उनके पास 2003 का कोई कागज नहीं है। और इस वजह से उनकी कलाई खुल जा रही है।
ये कैसी व्यवस्था है? ये कौन घुसपैठियों को संरक्षण दे कर उनके कागज बनवा दे रहा है? सत्ता में बने रहने के लिए देश की सुरक्षा को भी दांव पर लगा देंगे? और अब जब इनके ये गोरखधंधे उजागर हो कर उन पर रोक लग रही है, तो ये चुनाव आयोग को बदनाम करने में जुट गए हैं?
वस्तुतः चुनाव आयोग द्वारा SIR प्रक्रिया को अत्यन्त प्रभावी रूप से लागू किया है और इसके लिए उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। आशा है कि आगे भी चुनाव आयोग अपनी भूमिका कुशलता से निभाता रहेगा।
श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
29/11/2025

